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सब्र-ओ-तस्लीम की सिपर भी नहीं | शाही शायरी
sabr-o-taslim ki sipar bhi nahin

ग़ज़ल

सब्र-ओ-तस्लीम की सिपर भी नहीं

सय्यद सिद्दीक़ हसन

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सब्र-ओ-तस्लीम की सिपर भी नहीं
और तदबीर कार-गर भी नहीं

तुझ से तर्क-ए-तअल्लुक़ात भी है
और तिरी याद से मफ़र भी नहीं

अब ये कम-हिम्मती का आलम है
ए'तिमाद अपने-आप पर भी नहीं

ग़म की तीरा-शबी मआ'ज़-अल्लाह
अब तो अंदाज़ा-ए-सहर भी नहीं

मंज़िलों का सुराग़ ढूँढते हैं
जो सज़ा-वार-ए-रहगुज़र भी नहीं

दिल नहीं मो'तबर न हो लेकिन
मो'तबर क्या तिरी नज़र भी नहीं

हम पे क्यूँ चर्ख़ की निगाह पड़ी
हम तो कुछ ऐसे नामवर भी नहीं