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सबब तो कुछ भी नहीं और उदास रहता है | शाही शायरी
sabab to kuchh bhi nahin aur udas rahta hai

ग़ज़ल

सबब तो कुछ भी नहीं और उदास रहता है

नसीम अहमद नसीम

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सबब तो कुछ भी नहीं और उदास रहता है
ये कैसा दर्द है जो दिल के पास रहता है

मुझे पता नहीं उस का मगर ये सुनता हूँ
वो इन दिनों मिरे घर के ही पास रहता है

मिरी किताब के औराक़ सब तुम्हारे हैं
जहाँ से देखो तिरा इक़्तिबास रहता है

मैं काटता हूँ हर एक लम्हा कर्बला की तरह
लबों पे प्यास तो दिल में हिरास रहता है

मैं कल तलक जिसे इक आँख भी ये भाता था
उसी के दिल में मिरा अब निवास रहता है

'नसीम' नाम के उस आदमी से मिलना तुम
न जाने हर घड़ी क्यूँ बद-हवास रहता है