सबा ये बारगह-ए-हुस्न में ख़बर करना
उसे तो चाहिए ज़र्रों को भी क़मर करना
में चाहता हूँ तअल्लुक़ के दरमियाँ पर्दा
वो चाहता है मिरे हाल पर नज़र करना
मिरे ख़ुदा मिरी दुनिया ही ख़त्म कर देना
अगर दुआओं को मेरी तू बे-असर करना
ये देख लेना मोहल्ले के लोग कैसे हैं
फिर इस के ब'अद ही तामीर अपना घर करना
तुम्हारा काम है कीचड़ उछालना लेकिन
हमारे ज़र्फ़ में शामिल है दरगुज़र करना
मिरी हयात से है प्यार इस लिए 'आजिज़'
वो चाहता है मिरी उम्र मुख़्तसर करना

ग़ज़ल
सबा ये बारगह-ए-हुस्न में ख़बर करना
लईक़ आजिज़