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सबा की ख़ाक-नवर्दी सुबू की वीरानी | शाही शायरी
saba ki KHak-nawardi subu ki virani

ग़ज़ल

सबा की ख़ाक-नवर्दी सुबू की वीरानी

ख़ालिद कर्रार

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सबा की ख़ाक-नवर्दी सुबू की वीरानी
तुम्हारे बाद हुई आरज़ू की वीरानी

तिरे बग़ैर मेरे हौसले ज़वाल-पज़ीर
तिरे बग़ैर मिरी जुस्तुजू की वीरानी

शुमार-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ हिसाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद
वज़ू की ख़ाना-पुरी थी लहू की वीरानी

हर एक दश्त पुराना सराब-ए-जाँ की तरह
हर एक शहर नया आबरू की वीरानी

तुम्हारे साथ से मेरे सुख़न की शीरीनी
तुम्हारे बाद मिरी गुफ़्तुगू की वीरानी

तमाम रात सराब-ए-सफ़र का धड़का था
तमाम रात थी इक हा-ओ-हू की वीरानी