सबा की बात सुनें फूल से कलाम करें
बहार आए तो हम भी जुनूँ में नाम करें
न कोई रेत का टीला न साया-दार दरख़्त
रह-ए-वफ़ा में मुसाफ़िर कहाँ क़याम करें
क़दम क़दम पे मिले बोलते हुए पत्थर
तुम्ही बताओ कि अब किस से हम कलाम करें
महक उड़ाती हुई आई है नसीम-ए-बहार
कहो अब अहल-ए-चमन से कि फ़िक्र-ए-दाम करें
हमारी राह में दीवार बन गई दुनिया
तुम्हारे शहर में किस किस को हम सलाम करें
वो जिन के दम से ज़माने के ख़्वाब रंगीं हैं
हमारी नींद भी आ कर कभी हराम करें
धुआँ धुआँ सी फ़ज़ा शहर-ए-दिल की है 'पर्वाज़'
नए चराग़ जलाने का इंतिज़ाम करें
ग़ज़ल
सबा की बात सुनें फूल से कलाम करें
अल्ताफ़ परवाज़