सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या
इक इशारा-ए-फ़र्दा एक जुम्बिश-ए-लब क्या
देख दिखाता है वा'दा-ए-तज़ब्ज़ब क्या
चुल्लू-भर में मतवाली दो ही घूँट में ख़ाली
ये भरी जवानी क्या जज़्बा-ए-लबालब क्या
हाँ दुआएँ लेता जा गालियाँ भी देता जा
ताज़गी तो कुछ पहुँचे चाहता रहूँ लब क्या
शामत आ गई आख़िर कह गया ख़ुदा-लगती
रास्ती का फल पाता बंदा-ए-मुक़र्रब क्या
उल्टी-सीधी सुनता रह अपनी कह तो उल्टी कह
सादा है तू क्या जाने भाँपने का है ढब क्या
सब जिहाद हैं दिल के सब फ़साद हैं दिल के
बे-दिलों का मतलब क्या और तर्क-ए-मतलब क्या
हो रहेगा सज्दा भी जब किसी की याद आई
याद जाने कब आए ज़िंदा-दारी-ए-शब क्या
आँधियाँ रुकें क्यूँ कर ज़लज़ले थमीं क्यूँ कर
कार-गाह-ए-फ़ितरत में पासबानी-ए-रब क्या
कार-ए-मर्ग कै दिन का थोड़ी देर का झगड़ा
देखना है ये नादाँ जीने का है कर्तब क्या
पड़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले
मूज़ियों के मूज़ी को फ़िक्र-ए-नीश-ए-अक़रब क्या
मीरज़ा 'यगाना' वाह ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद
इक बला-ए-बे-दरमाँ क्या थे तुम और अब क्या

ग़ज़ल
सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
यगाना चंगेज़ी