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सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके | शाही शायरी
sab ko dil ke dagh dikhae ek tujhi ko dikha na sake

ग़ज़ल

सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके

इब्न-ए-इंशा

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सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके
तेरा दामन दूर नहीं था हाथ हमीं फैला न सके

तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके

ना तुझ से कुछ हम को निस्बत ना तुझ को कुछ हम से काम
हम को ये मालूम था लेकिन दिल को ये समझा न सके

अब तुझ से किस मुँह से कह दें सात समुंदर पार न जा
बीच की इक दीवार भी हम तो फाँद न पाए ढा न सके

मन पापी की उजड़ी खेती सूखी की सूखी ही रही
उमडे बादल गरजे बादल बूँदें दो बरसा न सके