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सब होत न होत से नथरी हुई आसान ग़ज़ल हूँ छा के सुनो | शाही शायरी
sab hot na hot se nathri hui aasan ghazal hun chha ke suno

ग़ज़ल

सब होत न होत से नथरी हुई आसान ग़ज़ल हूँ छा के सुनो

रउफ़ रज़ा

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सब होत न होत से नथरी हुई आसान ग़ज़ल हूँ छा के सुनो
कभी गुज़रो नूर-सरा से मेरी कभी मुझ को मुझ से चुरा के सुनो

मिरा दिल भी कोई पनघट है जहाँ परियाँ पानी भरती हैं
कोई पीड़ा नहीं कोई शोर नहीं सब पानी मिरा गहरा के सुनो

दिन रात ज़मीन की गर्दिश पर सुर-ताल बिठाते रहते हो
कभी ख़ुद को भी हैरान करो कभी दिल की बात सुना के सुनो

जो गर्दन में इक ख़म सा है ये कब से हुआ मालूम नहीं
ये शान निशान तो मिलता है जब सीने की पथरा के सुनो