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साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे | शाही शायरी
saz-e-hayat qaid-o-salasil kahen kise

ग़ज़ल

साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे

ग़यास अंजुम

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साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे
जब दिल ही बुझ गया हो तो फिर दिल कहें किसे

रूदाद-ए-ग़म तवील तो इतनी नहीं मगर
कोई कहाँ है मद्द-ए-मुक़ाबिल कहें किसे

बचते बचाते मौज-ए-हवादिस से आ के हम
साहिल पे डूब जाएँ तो साहिल कहें किसे

दस्त-ए-दुआ भी काट के अहबाब चल दिए
हाल-ए-दिल-ए-शिकस्ता में शामिल कहें किसे

'अंजुम' हमारा अहद है बहरूपियों का अहद
जो है नक़ाब-पोश है क़ातिल कहें किसे