साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था
साथी कोई तो रात की तन्हाइयों में था
हर ज़ख़्म मेरे जिस्म का मेरा गवाह है
मैं भी शरीक अपने तमाशाइयों में था
ग़ैरों की तोहमतों का हवाला बजा मगर
मेरा भी हाथ कुछ मिरी रुस्वाइयों में था
टूटे हुए बदन पे लकीरों के जाल थे
क़रनों का अक्स उम्र की परछाइयों में था
गिर्दाब-ए-ग़म से कौन किसी को निकालता
हर शख़्स ग़र्क़ अपनी ही गहराइयों में था
नग़्मों की लय से आग सी दिल में उतर गई
सुर रुख़्सती के सोज़ का शहनाइयों में था
'रासिख़' तमाम गाँव के सूखे पड़े थे खेत
बारिश का ज़ोर शहर की अँगनाइयों में था
ग़ज़ल
साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था
रासिख़ इरफ़ानी