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सातों रंग खुला नहीं पाए हम भी तो | शाही शायरी
saton rang khula nahin pae hum bhi to

ग़ज़ल

सातों रंग खुला नहीं पाए हम भी तो

ख़ुर्शीद अफ़सर बसवानी

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सातों रंग खुला नहीं पाए हम भी तो
मौसम उस के ला नहीं पाए हम भी तो

डूबते कैसे बर्फ़ जमी थी दरिया में
साँसों से पिघला नहीं पाए हम भी तो

जिस की तोहमत रक्खी अपने बुज़ुर्गों पर
वो दीवार गिरा नहीं पाए हम भी तो

लड़के हम से पूछ रहे थे कौन हैं आप
बरसों घर तक जा नहीं पाए हम भी तो

किस मुँह से हम उस को समझाते 'अफ़सर'
दिल का बोझ उठा नहीं पाए हम भी तो