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साथ उल्फ़त के मिले थोड़ी सी रुस्वाई भी | शाही शायरी
sath ulfat ke mile thoDi si ruswai bhi

ग़ज़ल

साथ उल्फ़त के मिले थोड़ी सी रुस्वाई भी

राहुल झा

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साथ उल्फ़त के मिले थोड़ी सी रुस्वाई भी
वस्ल के बाद मुझे चाहिए तन्हाई भी

तंग हो मेरे जुनूँ से कहीं छुप बैठी थी अक़्ल
और उसे ढूँढने में खो गई बीनाई भी

उम्र जब रूठी तो अपना दिया सब कुछ ले चली
ज़ोर भी ज़ब्त भी रफ़्तार भी रा'नाई भी

मैं ने चाहा था कि बिल्कुल ही अकेला हो जाऊँ
सो गया ग़म गई इशरत गई तन्हाई भी