साथ मेरे अपने साए के सिवा कोई न था
अजनबी थे सब जहाँ में आश्ना कोई न था
सारे रिश्ते रेत की दीवार थे मौसम के फूल
बात का सच्चा यहाँ दिल का खरा कोई न था
जिन के धोके थे मिसाली जिन की बातें नेश्तर
सिर्फ़ हम मोहसिन थे उन के दूसरा कोई न था
ज़िंदगी की दौड़ में हर शख़्स था बे-आसरा
शोर-ए-बे-हंगाम में नग़्मा-सरा कोई न था
इक शजर ऐसा भी राह-ए-ज़ीस्त में 'सरवत' मिला
फूल तो शाख़ों पे थे पत्ता हरा कोई न था

ग़ज़ल
साथ मेरे अपने साए के सिवा कोई न था
नूर जहाँ सरवत