सात रंगों से बनी है याद ताज़ा 
धूप लिख लाई मुबारकबाद ताज़ा 
बन गई जन्नत तो हिजरत कर गए हैं 
नौ-ब-नौ है दश्त-ए-जाँ आबाद ताज़ा 
लफ़्ज़ ओ मअनी का ज़ियाँ है ख़ुद-अज़ाबी 
लौह-ए-दिल पर है क़लम की दाद ताज़ा 
आब-ए-ताज़ा ख़ंजर-ए-ख़ामोश को दे 
है बुरीदा लब पे फिर फ़रियाद ताज़ा 
फिर बहाने जाएगा लावा लहू का 
ख़िश्त-ए-दिल पर घर की रख बुनियाद ताज़ा 
बे-चराग़ाँ बस्तियों को ज़िंदगी दे 
इक सितम ऐसा भी कर ईजाद ताज़ा 
ऐसी चुप से और दिल घुटने लगा है 
कुछ तो हो रूह-ए-नवा इरशाद ताज़ा
        ग़ज़ल
सात रंगों से बनी है याद ताज़ा
ज़फ़र गौरी

