सारी रात कहानी सुन के हम तो लब न खोलेंगे
वैसे छुप के हँस भी लेंगे वैसे तन्हा रो लेंगे
उजड़े दिल की बस्ती वाले इतने ग़ाफ़िल होते हैं
खो भी गए तो इस मेले में किसी के संग भी हो लेंगे
बादल गरजे बिजली कड़के या सावन भादों बरसें
हम सड़कों पे रहने वाले चुप्पी साध के सो लेंगे
यारो तुम ये फ़िक्र न करना किस के सर इल्ज़ाम लगे
हम तो अपने ख़ून से अपने दोनों हाथ भिगो लेंगे
जब भी दर्द से दिल तड़पेगा टुकड़े टुकड़े होगी रूह
किसी अँधेरे कमरे में हम दिल में दर्द समो लेंगे
हम ने सारी उम्र अकेले मौत का रस्ता देखा है
जब भी आई किसी भी चौखट पर सर रख के सो लेंगे
चुपके चुपके कफ़न लपेटे निकलेंगे जब हम घर से
लाख बुलाओगे रो रो कर हरगिज़ आँख न खोलेंगे
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ग़ज़ल
सारी रात कहानी सुन के हम तो लब न खोलेंगे
मुश्ताक़ सिंह