सारी दुनिया है एक पर्दा-ए-राज़ 
उफ़ रे तेरे हिजाब के अंदाज़ 
मौत को अहल-ए-दिल समझते हैं 
ज़िंदगानी-ए-इश्क़ का आग़ाज़ 
मर के पाया शहीद का रुत्बा 
मेरी इस ज़िंदगी की उम्र दराज़ 
कोई आया तिरी झलक देखी 
कोई बोला सुनी तिरी आवाज़ 
हम से क्या पूछते हो हम क्या हैं 
इक बयाबाँ में गुम-शुदा आवाज़ 
तेरे अनवार से लबालब है 
दिल का सब से अमीक़ गोशा-ए-राज़ 
आ रही है सदा-ए-हातिफ़-ए-ग़ैब 
'जोश' हमता-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़
        ग़ज़ल
सारी दुनिया है एक पर्दा-ए-राज़
जोश मलीहाबादी

