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सारे तो नहीं जान बचाने में लगे हैं | शाही शायरी
sare to nahin jaan bachane mein lage hain

ग़ज़ल

सारे तो नहीं जान बचाने में लगे हैं

जुनैद अख़्तर

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सारे तो नहीं जान बचाने में लगे हैं
कुछ घाव हमें ज़ख़्म लगाने में लगे हैं

है सब को ख़बर शाह के चेहरे पे है कालक
आईने मगर सारे छुपाने में लगे हैं

बेच आए इसे इस के निगहबान कभी का
हम लोग मगर घर को सजाने में लगे हैं

बैठा ही नहीं जाता परिंदों में भी अब तो
बे-पर की यहाँ ये भी उड़ाने में लगे हैं

मरने पे खुली है तिरे दरवेश की क़ीमत
पत्थर भी सिरहाने के ख़ज़ाने में लगे हैं

सहरा में चला आया हूँ कुछ प्यास बुझा लूँ
दरियाओं पे सब पीने पिलाने में लगे हैं

आ जाएगी चक्कर में हमारे वो किसी दिन
हम गर्दिश-ए-दौराँ को घुमाने में लगे हैं

लगता ही नहीं दौर-ए-मोहब्बत भी कभी था
अब लोग यहाँ सिर्फ़ कमाने में लगे हैं

उस ने भी तो है वक़्त की गर्दिश को सँवारा
'अख़्तर' से कई चाँद ज़माने में लगे हैं