EN اردو
सारे जग से रूठ जाना चाहती हूँ | शाही शायरी
sare jag se ruTh jaana chahti hun

ग़ज़ल

सारे जग से रूठ जाना चाहती हूँ

मेगी आसनानी

;

सारे जग से रूठ जाना चाहती हूँ
हाँ मगर तुम को मनाना चाहती हूँ

इक ख़ुशी गर तू जो मुझ को दे सके तो
सारे ग़म को भूल जाना चाहती हूँ

हाँ वतन को छोड़ा बरसो हो चुके हैं
अब मैं लेकिन लौट आना चाहती हूँ

इब्तिदा तू ही है मेरी इंतिहा भी
मैं फ़क़त इतना बताना चाहती हूँ

ईंट पत्थर से मकाँ बनते है सब के
मैं भरोसे का बनाना चाहती हूँ

बस तिरा ही प्यार माँगूँ ज़िंदगी में
मैं कहाँ कोई ख़ज़ाना चाहती हूँ

मैं ने कब चाहा की मर जाना मुझे है
एक जीने का बहाना चाहती हूँ