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साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़ | शाही शायरी
saqi ye pila usko jo ho jam se waqif

ग़ज़ल

साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़

नज़ीर अकबराबादी

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साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़
हम आज तलक मय के नहीं नाम से वाक़िफ़

मस्ती के सिवा दौर में उस चश्म-ए-सियह के
काफ़िर हो जो हो गर्दिश-ए-अय्याम से वाक़िफ़

मर कर भी तह-ए-ख़ाक न आसूदा हुए आह
ऐ इश्क़ न थे हम तिरे अंजाम से वाक़िफ़

सय्याद की उल्फ़त से फँसे आन के वर्ना
थे काहे को हम इस क़फ़स ओ दाम से वाक़िफ़

मिलने का पयाम उस से कहो जा के अज़ीज़ो
जो उस के न हो वस्ल के पैग़ाम से वाक़िफ़

औरों से क़सम खाइए और हम तो मिरी जाँ
हैं ख़ूब तुम्हारी क़सम-अक़साम से वाक़िफ़

कोई नहीं करता जो किया तू ने 'नज़ीर' आह
दिल उस को दिया जिस के नहीं नाम से वाक़िफ़