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साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख | शाही शायरी
saqi mai-e-gul-rang mere lab se mila dekh

ग़ज़ल

साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख

शैख़ मीर बख़्श मसरूर

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साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख
जिस वक़्त बहकने मैं लगूँ तब तू मज़ा देख

गर देखना है बुलबुल-ए-नालाँ का तमाशा
तो बाद-ए-सबा बाग़ में तू गुल को हँसा देख

बिगड़ी है शब-ए-वस्ल तो वो मुझ से कहे है
अब की तो बदन को तू मिरे हाथ लगा देख

पीछा तिरा छोड़ें न कभी बोसा लिए बिन
दो रोज़ हम ऐसों को ज़रा मुँह तो लगा देख

क्या फ़ाएदा गर उस के दिल-ओ-जाँ का ज़रर हो
'मसरूर' को यूँ ख़ूँ न रुला रंग-ए-हिना देख