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साँसों से ये कह दो कि ठहर जाएँ किसी दिन | शाही शायरी
sanson se ye kah do ki Thahar jaen kisi din

ग़ज़ल

साँसों से ये कह दो कि ठहर जाएँ किसी दिन

कान्ती मोहन सोज़

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साँसों से ये कह दो कि ठहर जाएँ किसी दिन
इस दिल पे करम इतना तो फ़रमाएँ किसी दिन

ये दिल कि जिसे रौंद के हर लम्हा गया है
परचम सा उठा कर इसे लहराएँ किसी दिन

मुमकिन है मिरे ज़र्फ़ का तख़्मीना लगाना
इस क़ाफ़िला-ए-दर्द को ठहराएँ किसी दिन

इस पे भी गिराँ गुज़रेगी ये ख़ू-ए-जफ़ा 'सोज़'
गर यार भी अपनी पे उतर आएँ किसी दिन