सामने से जो वो निगार गया
दिल पे तीर-ए-निगाह मार गया
देखो बेताबी दिल की उस दर पर
एक दिन में हज़ार बार गया
मंज़िल-ए-इश्क़ तक न पहुँचा आह
मैं तो चलते ही चलते हार गया
तेरे क़ुर्बान के तो लाएक़ हूँ
और कामों से गो मैं हार गया
पास से उस के सब गए ख़ुरसंद
एक 'अफ़सोस' सोगवार गया
ग़ज़ल
सामने से जो वो निगार गया
मीर शेर अली अफ़्सोस