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सामने मेरे है दुनिया ज्यूँ समुंदर रेत का | शाही शायरी
samne mere hai duniya jyun samundar ret ka

ग़ज़ल

सामने मेरे है दुनिया ज्यूँ समुंदर रेत का

मुकेश आलम

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सामने मेरे है दुनिया ज्यूँ समुंदर रेत का
और सब की ज़िंदगी जैसे बवंडर रेत का

रेत की दीवार के साए में बैठा आदमी
और साए पर भरोसा दिल के अंदर रेत का

रेत के महलों में रहते कारोबारी रेत के
जीत कर दुनिया रहेगा हर सिकंदर रेत का

नीव जाती है खिसकती क्या करेगा रब यहाँ
दीन-ओ-मज़हब रेत के हैं और मंदर रेत का

कहने वाला एक 'आलम' रेत के नग़्मे कहे
सुनने वाला ये ज़माना जैसे मंज़र रेत का