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साहिल पे ये टूटे हुए तख़्ते जो पड़े हैं | शाही शायरी
sahil pe ye TuTe hue taKHte jo paDe hain

ग़ज़ल

साहिल पे ये टूटे हुए तख़्ते जो पड़े हैं

शहूद आलम आफ़ाक़ी

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साहिल पे ये टूटे हुए तख़्ते जो पड़े हैं
टकराए हैं तूफ़ाँ से तलातुम से लड़े हैं

दिल अपना जलाओ शब-ए-ज़ुल्मत के हरीफ़ो
क्या ग़म है चराग़ों के अगर क़हत पड़े हैं

चढ़ने दो अभी और ज़रा वक़्त का सूरज
हो जाएँगे छोटे यही साए जो बड़े हैं

मंज़िल से पलट आए हैं हम अहल-ए-मोहब्बत
जो संग-ए-हिदायत थे वो रस्ते में खड़े हैं

हैं मस्ख़-शुदा चेहरे 'शहूद' आप से बरहम
आईना-सिफ़त आप मुक़ाबिल जो खड़े हैं