साहिल पे तेरे ब'अद की वीरानी खा गई
उतरे समुंदरों में तो तुग़्यानी खा गई
ताक़त ये चार दिन की है तारीख़ पढ़ ज़रा
सुल्तान कितने थे जिन्हें सुल्तानी खा गई
दुनिया बदल गई थी कोई ग़म न था मुझे
तुम भी बदल गए थे ये हैरानी खा गई
ग़ज़ल
साहिल पे तेरे ब'अद की वीरानी खा गई
नदीम गुल्लानी