साहिल पे क्या है बहर के अंदर तलाश कर
गहराइयों में डूब के गौहर तलाश कर
जिस में हयात-बख़्श नज़ारा दिखाई दे
गुलज़ार-ए-ज़िंदगी में वो मंज़र तलाश कर
देते हैं अब सदा तुझे मिर्रीख़ ओ माहताब
क्या क्या हैं उन की गोद में जा कर तलाश कर
मिट जाए जिस के नूर से ज़ुल्मत हयात की
ऐसा कोई चराग़-ए-मुनव्वर तलाश कर
तूफ़ान-ए-बहर-ए-ज़ीस्त में कश्ती न ग़र्क़ हो
ऐ नाख़ुदा पनाह का लंगर तलाश कर
जिस दाएरे में दौड़ लगाता रहा है तू
उस दाएरे के दौर का मेहवर तलाश कर
'कौसर' हो तुझ को ख़ुद से जो मिलने की आरज़ू
अपने को अपने आप में खो कर तलाश कर
ग़ज़ल
साहिल पे क्या है बहर के अंदर तलाश कर
कौसर सीवानी