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साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही | शाही शायरी
sahib-e-taj-e-basirat hun main diwana sahi

ग़ज़ल

साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही

मुख़्तार हाशमी

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साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही
फ़िक्र शाहाना है अंदाज़ फ़क़ीराना सही

ज़िक्र-ए-का'बा न सही क़िस्सा-ए-बुत-ख़ाना सही
हुस्न-ए-तफ़्हीम सलामत कोई अफ़्साना सही

मुनअ'किस ज़ेहन-ओ-नज़र में हैं ख़द-ओ-ख़ाल तिरे
तुझ को समझा तो बहुत है तुझे देखा न सही

सज्दा पाबंद-ए-तअ'य्युन तो नहीं दीवाने
है अगर बाब-ए-हरम बंद तो बुत-ख़ाना सही

हूर-ओ-कौसर के तसव्वुर से कहाँ तक बहलें
नार-ए-इमरोज़ ही दे जन्नत-ए-फ़र्दा न सही

निगह-ए-दिल के रवाबित से हम-आहंग तो है
मेरी दुनिया तिरी दुनिया से जुदागाना सही

मुनफ़रिद फिर भी है ऐ हुस्न हक़ीक़त उस की
ज़िंदगी इश्क़ की उन्वान-ए-सद-अफ़साना सही