साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही
फ़िक्र शाहाना है अंदाज़ फ़क़ीराना सही
ज़िक्र-ए-का'बा न सही क़िस्सा-ए-बुत-ख़ाना सही
हुस्न-ए-तफ़्हीम सलामत कोई अफ़्साना सही
मुनअ'किस ज़ेहन-ओ-नज़र में हैं ख़द-ओ-ख़ाल तिरे
तुझ को समझा तो बहुत है तुझे देखा न सही
सज्दा पाबंद-ए-तअ'य्युन तो नहीं दीवाने
है अगर बाब-ए-हरम बंद तो बुत-ख़ाना सही
हूर-ओ-कौसर के तसव्वुर से कहाँ तक बहलें
नार-ए-इमरोज़ ही दे जन्नत-ए-फ़र्दा न सही
निगह-ए-दिल के रवाबित से हम-आहंग तो है
मेरी दुनिया तिरी दुनिया से जुदागाना सही
मुनफ़रिद फिर भी है ऐ हुस्न हक़ीक़त उस की
ज़िंदगी इश्क़ की उन्वान-ए-सद-अफ़साना सही
ग़ज़ल
साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही
मुख़्तार हाशमी