साग़र-ब-दस्त हूँ मैं
मस्त-ए-अलस्त हूँ मैं
जो कुछ न है न थी कुछ
वो बूद-ओ-हस्त हूँ मैं
दिल है बुलंद बातिन
ज़ाहिर में पस्त हूँ मैं
कसरत से क्या तअल्लुक़
वहदत परस्त हूँ मैं
कह दो बहार आए
दामन ब-दस्त हूँ मैं
साक़ी को भूल बैठा
इस दर्जा मस्त हूँ मैं
क्यूँ कर कोई भुलाए
अहद-ए-अलस्त हूँ मैं
ग़म भी ख़ुशी में शामिल
फ़तह-ओ-शिकस्त हूँ मैं
कहते हों 'नूह' मुझ को
तूफ़ाँ परस्त हूँ मैं
ग़ज़ल
साग़र-ब-दस्त हूँ मैं
नूह नारवी