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साफ़-गोई रास्ती अच्छी लगी | शाही शायरी
saf-goi rasti achchhi lagi

ग़ज़ल

साफ़-गोई रास्ती अच्छी लगी

मुहिब कौसर

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साफ़-गोई रास्ती अच्छी लगी
बात उस को वाक़ई अच्छी लगी

इंतिहा-ए-दर्द-ओ-ग़म के बावजूद
तोहमत-ए-आवारगी अच्छी लगी

कौन जाने ज़ेहन की बे-माएगी
शक्ल-ओ-सूरत ज़ाहिरी अच्छी लगी

शहर के आराइशी माहौल में
गाँव की इक साँवली अच्छी लगी

आदमी अंदर का मेरे मर गया
मुझ को अपनी ख़ुद-कुशी अच्छी लगी