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साएबाँ क्या अब्र का टुकड़ा है क्या | शाही शायरी
saeban kya abr ka TukDa hai kya

ग़ज़ल

साएबाँ क्या अब्र का टुकड़ा है क्या

अम्बर शमीम

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साएबाँ क्या अब्र का टुकड़ा है क्या
धूप तो मा'लूम है साया है क्या

अपने दामन में छुपा ले मौज-ए-ग़म
क़तरा क़तरा ज़िंदगी जीना है क्या

ख़्वाब आँसू एहतजाजी ज़िंदगी
पूछिए मत शहर-ए-कलकत्ता है क्या

तुंद झोंके सब उड़ा ले जाएँगे
शाख़ से टूटा हुआ पत्ता है क्या

हर क़दम इक सानेहा है दोस्तो
ऐसे मौसम में कोई जीता है क्या

मेरी महरूमी मिरा ग़ुस्सा न पूछ
बर्फ़ की हिद्दत है क्या शो'ला है क्या

क्यूँ धड़कता है ये दिल अम्बर-'शमीम'
उस की यादों से मिरा रिश्ता है क्या