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रूठोगे बे-सबब तो मनाया न जाएगा | शाही शायरी
ruThoge be-sabab to manaya na jaega

ग़ज़ल

रूठोगे बे-सबब तो मनाया न जाएगा

मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी

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रूठोगे बे-सबब तो मनाया न जाएगा
बेजा तुम्हारा नाज़ उठाया न जाएगा

वो साथ लाएँ ग़ैर को गर बज़्म में तो क्या
आँखों पे मिन्नतों से बिठाया न जाएगा

यूँ मेरे साथ बज़्म में ग़ैरों का बैठना
वो ए'तिराज़ है कि उठाया न जाएगा

होगा असर जो दिल में तो ख़ुद जान लेंगे वो
'मुश्ताक़' हम से इश्क़ जताया न जाएगा