EN اردو
रूखी-सूखी खा सकते थे | शाही शायरी
rukhi-sukhi kha sakte the

ग़ज़ल

रूखी-सूखी खा सकते थे

मोहम्मद मुस्तहसन जामी

;

रूखी-सूखी खा सकते थे
तेरा साथ निभा सकते थे

काट के जड़ इक-दूजे की हम
कितने फूल उगा सकते थे

हम तलवार उठा नहीं पाए
हम आवाज़ उठा सकते थे

ग़ुर्बत का एहसान था हम पर
इक थाली में खा सकते थे

तुम ता'बीर ख़ुदा से माँगो
हम बस ख़्वाब दिखा सकते थे

हम को रोना आ जाता तो
हम भी शोर मचा सकते थे

ख़्वाबों ने जो आग लगाई
उस को अश्क बुझा सकते थे