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रूह ज़ख़्मी है जिस्म घायल है | शाही शायरी
ruh zaKHmi hai jism ghayal hai

ग़ज़ल

रूह ज़ख़्मी है जिस्म घायल है

आयुष चराग़

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रूह ज़ख़्मी है जिस्म घायल है
आप के इंतिज़ार का पल है

ग़म है दोनों का ज़ब्त से बाहर
छत पे मैं हूँ और एक बादल है

मेरे माज़ी की सुर्ख़ आँखों में
मेरी महरूमियों का काजल है

रंज है दर्द है उदासी है
ज़िंदगी हर तरह मुकम्मल है

दिल कहाँ है 'चराग़' सीने में
एक तूफ़ान जैसी हलचल है