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रू-ब-रू आना छुपाना छोड़ दे | शाही शायरी
ru-ba-ru aana chhupana chhoD de

ग़ज़ल

रू-ब-रू आना छुपाना छोड़ दे

जमीला ख़ुदा बख़्श

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रू-ब-रू आना छुपाना छोड़ दे
लन-तरानी का सुनाना छोड़ दे

जल्वा-गर हो जा मिरे दिल में सनम
कू-ब-कू मुझ को फिराना छोड़ दे

अब तो मुश्त-ए-ख़ाक बाक़ी रह गई
शो'ला-ए-फुर्क़त जलाना छोड़ दे

रंज सहने की नहीं ताक़त मुझे
ग़ैर की महफ़िल में जाना छोड़ दे

मिस्ल-ए-बुत ख़ामोश हो जाऊँगा मैं
गर सलासिल ग़ुल मचाना छोड़ दे

ऐ सबा सर-गश्ता मैं कब तक रहूँ
मेरी मिट्टी का उड़ाना छोड़ दे

तार तार अब हो गए दामन मिरे
पंजा-ए-वहशत सुनाना छोड़ दे

रुख़ पे आ कर बे-अदब करते हैं बल
गेसुओं का सर छुड़ाना छोड़ दे

हूँ 'जमीला' की तरह मैं ग़म-ज़दा
ऐ फ़लक मेरा सताना छोड़ दे