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रुकती नहीं है गर्दिश-ए-दौराँ कहा न था | शाही शायरी
rukti nahin hai gardish-e-dauran kaha na tha

ग़ज़ल

रुकती नहीं है गर्दिश-ए-दौराँ कहा न था

मुनीर अहमद देहलवी

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रुकती नहीं है गर्दिश-ए-दौराँ कहा न था
उट्ठा करेंगे नित-नए तूफ़ाँ कहा न था

बढ़ता रहेगा हौसला-ए-जब्र-ओ-इख़्तियार
तड़पा करेंगे ज़ुल्म से इंसाँ कहा न था

हर रोज़ होंगे क़त्ल के सामाँ नए नए
हर शाम होगी शाम-ए-ग़रीबाँ कहा न था

जारी रहा जो सिलसिला-ए-ज़ब्त-ए-आरज़ू
लौ दे उठेगी सोज़िश-ए-पिन्हाँ कहा न था

तज़लील-ए-ए'तिबार-ओ-यक़ीं होंगे हर्फ़-ओ-सौत
लुटती रहेगी दौलत-ए-ईमाँ कहा न था

दुनिया से मुंसिफ़ी की तवक़्क़ो फ़ुज़ूल है
बैठे रहोगे हश्र-ब-दामाँ कहा न था