रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
शब-ए-विसाल का जैसे ख़ुमार आँखों में
मिटा सकेगी उसे गर्द-ए-माह-ओ-साल कहाँ
खिंची हुई है जो तस्वीर-ए-यार आँखों में
बस एक शब की मसाफ़त थी और अब तक है
मह ओ नुजूम का सारा ग़ुबार आँखों में
हज़ार साहिब-ए-रख़्श-ए-सबा-मिज़ाज आए
बसा हुआ है वही शह-सवार आँखों में
वो एक था प किया उस को जब तह-ए-तलवार
तो बट गया वही चेहरा हज़ार आँखों में
ग़ज़ल
रुकी हुई है अभी तक बहार आँखों में
परवीन शाकिर