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रुख़ किसी का नज़र नहीं आता | शाही शायरी
ruKH kisi ka nazar nahin aata

ग़ज़ल

रुख़ किसी का नज़र नहीं आता

मुज़्तर ख़ैराबादी

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रुख़ किसी का नज़र नहीं आता
कोई आता नज़र नहीं आता

क्या कहूँ क्या मलाल रहता है
क्या कहूँ क्या नज़र नहीं आता

सुनने वाले तो बात के लाखों
कहने वाला नज़र नहीं आता

दूर से वो झलक दिखाते हैं
चाँद पूरा नज़र नहीं आता

खोई खोई नज़र ये क्यूँ 'मुज़्तर'
कुछ कहो क्या नज़र नहीं आता