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रोज़ इक रास्ता बदलता है | शाही शायरी
roz ek rasta badalta hai

ग़ज़ल

रोज़ इक रास्ता बदलता है

सीमा शर्मा मेरठी

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रोज़ इक रास्ता बदलता है
मेरा दिल बे-ख़ुदी में चलता है

आँधियाँ ही उखाड़ती हैं इसे
आँधियों में ही पेड़ पलता है

बाग़ ने किस से दुश्मनी कर ली
कौन हर फूल को मसलता है

जानता ही नहीं यहाँ कोई
किस बहाने से दिल बहलता है

पार हो जाए दश्त ही 'सीमा'
नींद में इतना कौन चलता है