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रोते रोते आँख हँसे तो हँसने दो | शाही शायरी
rote rote aankh hanse to hansne do

ग़ज़ल

रोते रोते आँख हँसे तो हँसने दो

क़ैसर अब्बास

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रोते रोते आँख हँसे तो हँसने दो
होंटों पर मुस्कान को ज़िंदा रहने दो

ख़ुशियों की रुत पर भी उन के पहरे हैं
बे-मौसम के फूल खिलें तो खिलने दो

कितना गहरा सन्नाटा है साहिल पर
लहरों से तूफ़ान उठे तो उठने दो

जाने कब वो एक मुसाफ़िर आ पहुँचे
चौखट पर इक दीप जला कर जलने दो

जिन ख़्वाबों में उस की ख़ुश्बू फैली है
उन ख़्वाबों को दिल में ज़िंदा रहने दो

लोगों से कह दो उम्मीदें ज़िंदा हैं
'क़ैसर' आँसू पलकों से मत गिरने दो