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रोक रक्खा था जो इन आँखों में खारा पानी | शाही शायरी
rok rakkha tha jo in aankhon mein khaara pani

ग़ज़ल

रोक रक्खा था जो इन आँखों में खारा पानी

मिर्ज़ा अतहर ज़िया

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रोक रक्खा था जो इन आँखों में खारा पानी
मेरी दीवारों में दर आया वो सारा पानी

एक दरिया को दिखाई थी कभी प्यास अपनी
फिर नहीं माँगा कभी मैं ने दोबारा पानी

अपनी आँखों से निचोड़ूँगा किसी रोज़ उसे
करता रहता है बहुत मुझ से किनारा पानी

अब के बारिश पे कोई हक़ नहीं इंसानों का
अब के चिड़ियों के लिए रब ने उतारा पानी

मैं समुंदर से लगी शोर-ज़मीं जैसा हूँ
मारता रहता है मुझ को मिरा खारा पानी

मैं ने इन आँखों से कुछ मोती चुने थे 'अतहर'
मेरे होंटों में अभी जज़्ब है खारा पानी