EN اردو
रिवायतों का बहुत एहतिराम करते हैं | शाही शायरी
riwayaton ka bahut ehtiram karte hain

ग़ज़ल

रिवायतों का बहुत एहतिराम करते हैं

मुश्ताक़ अहमद नूरी

;

रिवायतों का बहुत एहतिराम करते हैं
कि हम बुज़ुर्गों को झुक कर सलाम करते हैं

हर इक शख़्स ये कहता है और कुछ कहिए
हम अपनी बात का जब इख़्तिताम करते हैं

कभी जलाते नहीं हम तो बरहमी का चराग़
वो दुश्मनी की रविश रोज़ आम करते हैं

हरीफ़ अपना अगर सर झुका के मिलता है
तो हम भी तेग़ को ज़ेब-ए-नियाम करते हैं

मुझे ख़बर भी नहीं है कि एक मुद्दत से
वो मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़याम करते हैं

हक़ीक़तों को जिन्हें सुन के वज्द आ जाते
कुछ ऐसे काम भी उन के ग़ुलाम करते हैं

शराब कम हो तो 'नूरी' ब-नाम-ए-तिश्ना भी
लहू निचोड़ के लबरेज़ जाम करते हैं