रिश्ता-ए-दिल उसी से मिलता है
जो कोई सादगी से मिलता है
बैठ जाता है दिल मिरा अक्सर
जब कोई बेबसी से मिलता है
हाए अफ़्सोस मेरा रस्ता भी
बेवफ़ा की गली से मिलता है
राज़-ए-दिल क्या सुना गया उस को
तब से वो बे-दिली से मिलता है
उम्र भर जो मुझे सताएगा
हर घड़ी बे-कली से मिलता है
भूल पाना जिसे नहीं मुमकिन
फूल बन कर हँसी से मिलता है
जिस के दिल में जगह नहीं मेरी
मेरा दिल भी उसी से मिलता है
हाल-ए-दिल अब ज़बाँ नहीं कहती
आँख की इस तरी से मिलता है
क्या 'निसार' आज-कल कोई लम्हा
आप से भी ख़ुशी से मिलता है
ग़ज़ल
रिश्ता-ए-दिल उसी से मिलता है
अहमद निसार