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रिंदों को तिरे आरज़ू-ए-ख़ुश्क-लबी है | शाही शायरी
rindon ko tere aarzu-e-KHushk-labi hai

ग़ज़ल

रिंदों को तिरे आरज़ू-ए-ख़ुश्क-लबी है

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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रिंदों को तिरे आरज़ू-ए-ख़ुश्क-लबी है
अब ऐ निगह-ए-मस्त तू क्या ढूँड रही है

मंसूख़ है इस दौर में हर रस्म-ए-गिरेबाँ
अब मश्ग़ला-ए-अहल-ए-जुनूँ सीना-ज़नी है

शहज़ादा-ए-म'अनी कोई आए तो जगाए
शायर का तख़य्युल भी तो ख़्वाबीदा परी है

मुद्दत से थी आवारा वो पहनाए-फ़ज़ा में
ख़ाक-ए-रह-ए-अंजुम जो मिरे सर पे पड़ी है

हर ख़ार है ग़ल्तीदा-ब-ख़ूँ दश्त-ए-वफ़ा में
ऐ संग-ए-रह-ए-यार किसे ठेस लगी है