EN اردو
रेतीली कितनी हवा है इर्द-गिर्द | शाही शायरी
retili kitni hawa hai ird-gird

ग़ज़ल

रेतीली कितनी हवा है इर्द-गिर्द

ज़ीशान साजिद

;

रेतीली कितनी हवा है इर्द-गिर्द
हर नज़र इक आइना है इर्द-गिर्द

हसरतों की सरज़मीं खूँ-रेज़ है
ख़्वाहिशों की कर्बला है इर्द-गिर्द

इक हक़ीक़त हैं मिरी तन्हाइयाँ
एक एहसास-ए-ख़ुदा है इर्द-गिर्द

ज़िंदगी कच्चा घड़ा दुनिया चनाब
तेज़-रौ पानी चला है इर्द-गिर्द

क्या ख़बर कब कौन जीना छोड़ दे
ताक में किस की क़ज़ा है इर्द-गिर्द

जितनी बूढ़ी हो गईं सोचें मिरी
उतना ज़ियादा बचपना है इर्द-गिर्द

धूल है बस धूल 'ज़ीशाँ' चार-सम्त
एक बे-रस्ता दिशा है इर्द-गर्द