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रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था | शाही शायरी
ret par mujhko guman pani ka tha

ग़ज़ल

रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था

सलीम शहज़ाद

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रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था
सब्र मेरा इम्तिहाँ पानी का था

सब जुनून-ओ-अज़्म काग़ज़ कश्तियाँ
सामना जब बे-कराँ पानी का था

संग-ए-सहरा में थी दरिया की नुमूद
संग-ए-सहरा में ज़ियाँ पानी का था

यूँ मिली सैलाब में जा-ए-पनाह
सर पे मेरे साएबाँ पानी का था

आग भी बरसी दरख़्तों पर वहीं
काल बस्ती में जहाँ पानी का था

इक सुनहरी फ़ाख़्ता थी पर-कुशा
जब ये बे-सम्त आसमाँ पानी का था