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रविश उस चाल में तलवार की है | शाही शायरी
rawish us chaal mein talwar ki hai

ग़ज़ल

रविश उस चाल में तलवार की है

आसी ग़ाज़ीपुरी

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रविश उस चाल में तलवार की है
मौत उश्शाक़-ए-गुनहगार की है

गुल ओ गुलशन से कभी जी न लगाए
ये सदा मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार की है

रश्क-ए-गुलशन हो इलाही ये क़फ़स
ये सदा मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार की है

निकहत-ए-गुल न सबा भी लाई
ये सदा मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार की है

आ के बे-पर्दा मिलें वो दम-ए-नज़अ
ये दुआ आशिक़-ए-बीमार की है

पेश-ए-मेहराब न क्यूँ सज्दे हों
सूरत उस अबरू-ए-ख़मदार की है

चाल वो चल कि न हो महशर-ख़ेज़
ये रविश चर्ख़-ए-जफ़ाकार की है

मुझ को हंगामा-ए-महशर से ग़रज़
बस तमन्ना तिरे दीदार की है

तलब-ए-राह-ए-ख़ुदा में लेकिन
पैरवी हैदर-ए-कर्रार की है