रविश रविश पे जवानी के ताजदार आए
जुनूँ के क़ाफ़िले वाबस्ता-ए-बहार आए
वो रात जिस का बड़ा इंतिज़ार था दिल को
वो रात दर्द के पहलू में हम गुज़ार आए
मिला जवाब हरम से न बुत-कदे से कहीं
गली गली में तिरे नाम को पुकार आए
ख़ुदा करे मिरी रातों में काएनात-ए-जमाल
गई बहार को ले कर हज़ार बार आए
किसी की याद के जल्वों के बे-क़रार हुजूम
उफ़ुक़ से चाँद जो उभरा तो अश्क-बार आए
जो होने वाला है हो कर रहेगा 'मीर' आख़िर
मगर मजाल है दिल को कहीं क़रार आए
ग़ज़ल
रविश रविश पे जवानी के ताजदार आए
मीर बशीर