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रवाँ नदी के किनारे सड़क पे रुक जाना | शाही शायरी
rawan nadi ke kinare saDak pe ruk jaana

ग़ज़ल

रवाँ नदी के किनारे सड़क पे रुक जाना

इनाम कबीर

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रवाँ नदी के किनारे सड़क पे रुक जाना
तुम आँसुओं से निकलना पलक पे रुक जाना

वो बार बार नहीं बोलता ठहरने को
सो उस की एक ज़रा सी लचक पे रुक जाना

ऐ मेरे यार तिरे पीछे आ रहा हूँ मैं
तू इंतिज़ार की ख़ातिर फ़लक पे रुक जाना

वो जिस जगह पे मिले थे हम आख़िरी लम्हे
तुम उस की सामने वाली सड़क पे रुक जाना