रवाँ है मौज-ए-फ़ना जिस्म ओ जाँ उतार मुझे
उतार अब के सर-ए-आसमाँ उतार मुझे
मिरा वजूद समुंदर के इज़्तिराब में है
कि खुल रहा है तिरा बादबाँ उतार मुझे
बहुत अज़ीज़ हूँ ख़ारान-ए-ताज़ा-कार को मैं
बहुत उदास है दश्त-ए-जवाँ उतार मुझे
कोई जज़ीरा जहाँ हस्त-ओ-बूद हो न फ़ना
वजूद हो न ज़माना वहाँ उतार मुझे

ग़ज़ल
रवाँ है मौज-ए-फ़ना जिस्म ओ जाँ उतार मुझे
ख़ालिद कर्रार