रवाँ-दवाँ है ज़िंदगी चराग़ के बग़ैर भी
है मेरे घर में रौशनी चराग़ के बग़ैर भी
थे जिस की जुस्तुजू में सब हरीफ़-ए-कारवान-ए-शब
वो राह हम ने ढूँड ली चराग़ के बग़ैर भी
मोहब्बतों के दीप हर क़दम पे मैं जलाऊँगा
है मुझ में ज़ौक़-ए-आगही चराग़ के बग़ैर भी
वो ज़िंदगी जो मशअ'ल-ए-वफ़ा की हम-रिकाब थी
गुज़र गई हँसी-ख़ुशी चराग़ के बग़ैर भी
ग़ज़ल
रवाँ-दवाँ है ज़िंदगी चराग़ के बग़ैर भी
अख्तर सईदी